रविवार, 25 जुलाई 2010

निर्ग्रंथ प्रवचन

निर्ग्रंथ प्रवचन

सत्य यह निर्ग्रंथ प्रवचन, अनुत्तर लाज़वाब यह दर्शन ।
सर्वज्ञ केवली भाषित है यह, सर्वोत्तम शुद्धरूप प्ररुपन ॥

सभी तरह से है परिपूर्ण, न्यायसंगत और तर्कपूर्ण ।
शल्यों का निवारक है यह, प्रमाण अबाधित है सम्पूर्ण ॥

अविलम्ब सिद्धि दायक, निश्चित ही यह मुक्ति दायक ।
यही केवल निर्वाण पथ है, और सदा निर्याण सहायक ॥

जो जीव इसमें स्थिर रहते, सिद्ध अवस्था प्राप्त है करते ।
केवलज्ञानी बुद्ध होकर के, जन्म मरण से मुक्ति पाते ॥

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

जिनवाणी

सर्वोत्तम शुद्ध सर्वमंगला,
सुधर्म साधन सदवाणी।
विशल्य विशुद्ध विमला,
वीतराग विशद वाणी॥

पाप पंक प्रशम परुपित,
पावन प्राज्ञ प्रवाहिणी।
दुर्जय दारूण दुख दामिनी,
शाश्वत सुखदा कल्याणी॥

अद्वित्य अनुत्तर अनुपम,
आर्षवचन अमृत वाणी।
जय जिनवर जय तीर्थंकर जय,
धन्य धन्य हे जिनवाणी॥