मंगलवार, 6 जुलाई 2010

जिनवाणी

सर्वोत्तम शुद्ध सर्वमंगला,
सुधर्म साधन सदवाणी।
विशल्य विशुद्ध विमला,
वीतराग विशद वाणी॥

पाप पंक प्रशम परुपित,
पावन प्राज्ञ प्रवाहिणी।
दुर्जय दारूण दुख दामिनी,
शाश्वत सुखदा कल्याणी॥

अद्वित्य अनुत्तर अनुपम,
आर्षवचन अमृत वाणी।
जय जिनवर जय तीर्थंकर जय,
धन्य धन्य हे जिनवाणी॥

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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