रविवार, 1 अगस्त 2010

परमेष्ठी वंदन

सर्व प्रथम वंदन करूं, वितराग भगवान।

तीर्थंकर अर्हंत प्रभु,भवतारक जलयान॥




जिनवाणी पर आस्था, शमन करे भवताप।

स्मरण मनन जगे चेतना, हरे सभी सन्ताप॥



प्रभु आज्ञा में रमण करे, संत मुनि निर्ग्रंथ।

आर्षवचन उपदेश से, करे उपकार अंनत॥



बडे जतन से जीव का, जीवन दिया संवार।

भूल नहिं सकते कभी, परमेष्ठी उपकार॥





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