जैन संस्कृति
सुलग रहा संसार यह, जैसे वन की आग ।फ़िर भी मनुज लगा रहा?, इच्छओं के बाग ॥2॥एक आस की डोर बंधी है जो टूटती नहीं है
सुलग रहा संसार यह, जैसे वन की आग ।
जवाब देंहटाएंफ़िर भी मनुज लगा रहा?, इच्छओं के बाग ॥2॥
एक आस की डोर बंधी है जो टूटती नहीं है