मंगलवार, 16 नवंबर 2010

दूर कर अज्ञान, अन्तर ज्योति को जगाना है।

एक आतम भाव,एक आतम भाव हमको लोकालोक से प्यारा है।
ना मिले जड भाव, ना मिले जड भाव चेतन भाव तो हमारा है।
उसी से हर उजाला है, एक आतम भाव…

ज्ञानदर्शनमय, हमारी आत्मा है, उपयोग में झूलती है।
बंधनों को तोड, बंधनों को तोड हमें मोक्ष में ही जाना है।
उसी से हर उजाला है…

माया के चक्कर में, हम भान यूं भूले, तो दर्द यूं झेलते है।
कषायों को छोड, कषायों को छोड वितरागता को पाना है।
उसी से हर उजाला है…

राग बंधन है, वितराग मुक्ति है, तो संयम मोक्षमार्ग है।
दूर कर अज्ञान, दूर कर अज्ञान अन्तर ज्योति को जगाना है।
उसी से हर उजाला है…

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें