सिर का शृंगार तभी है, जब सत्य समक्ष नतमस्तक हो।
भाल का शृंगार तभी है, जब यश दीन दुखी के मुख हो॥
नयनों का शृंगार तभी है, जब वह करूणा से सज़ल हो।
नाक का शृंगार तभी है, जब वह परोपकार से उत्तंग हो॥
कान का शृंगार तभी है, जब वह आलोचना सुश्रुत हो।
होठो का शृंगार तभी है, हिले तो मधूर वचन प्रकट हो॥
गले का शृंगार तभी है, जब विनय पूर्ण नम जाय।
सीने का शृंगार तभी है, जिसमें आत्मगौरव बस जाय॥
हाथों का शृंगार तभी है, पीडित सहायता में बढ जाए।
हथेली का शृंगार तभी है, मिलन पर प्रेम को पढ जाए॥
कमर का शृंगार तभी है, जब बल मर्यादा से खाए।
पैरों का शृंगार तभी है, तत्क्षण मदद में उठ जाए॥
जिन्हीं हरि कथा सुनी नहीं काना।
जवाब देंहटाएंश्रवण रंध्र अहि भवन समाना।।
जे न करहिं रामगुन गाना।
जीह सो दादुर जीह समाना।।