उठ जाग रे मुसाफ़िर, अब हो गया सवेरा।
पल पलक खोल प्यारे, अब मिट गया अंधेरा॥ उठ जाग……
प्राची में पो फ़टी है, पर फडफडाए पंछी।
चह चहचहा रहे है, निशि भर यहाँ बसेरा॥ उठ जाग……
लाली लिए खडी है, उषा तुझे जगाने।
सृष्टी सज़ी क्षणिक सी, अब उठने को है डेरा॥ उठ जाग……
वे उड चले विहंग गण, निज लक्ष साधना से।
आंखों में क्यूं ये तेरी, देती है नींद घेरा॥ उठ जाग……
साथी चले गये है, तूं सो रहा अभी भी।
झट चेत चेत चेतन, प्रमाद बना लूटेरा॥ उठ जाग……
सूरज चढा है साधक, प्रतिबोध दे रहा है।
पाथेय बांध संबल, गंतव्य दूर तेरा॥ उठ जाग……
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें