खाते है जहाँ गम सभी, नहिं जहाँ पर क्लेश।
निर्मल गंगा बह रही, प्रेम की जहाँ विशेष॥
नहिं व्यसन-वृति कोई, खान-पान विवेक।
सोए-जागे समय पर, करे कमाई नेक॥
दाता जिस घर में सभी, निंदक नहिं नर-नार।
अतिथि का आदर करे, सात्विक सद्व्यवहार॥
नमन गुणीजनों को करे, दुखीजन के दुख दूर।
स्वावलम्बन समृद्धि धरे, हर्षित रहे भरपूर॥
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