शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

मधुरवाणी

प्रियवाक्य प्रदानेन, सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात तदेव वक्तव्यं, वचने का दरिद्रता ?॥

"मधुर वचन से ही सभी प्रसन्न होते है, अतः सभी को मधुर वाणी ही बोलनी चाहिये। भला वचन की भी क्या दरिद्रता?"

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                       चुडियों का व्यापारी, एक गधी पर चुडियां लाद कर बेचा करता था। एक बार किसी एक गांव से दूसरे गांव जाते हुए रास्ते में बोलता जा रहा था, 'चल मेरी माँ, तेज चल'।'चल मेरी बहन,जरा तेज चल'। साथ चल रहे राहगीर नें जब यह सुना तो पुछे बिना न रह पाया। "मित्र  तुम इस गधी को क्यों माँ बहन कहकर सम्बोधित कर रहे हो?"
चुडियों वाले ने उत्तर दिया, "भाई मेरा व्यवसाय ही ऐसा है, मुझे दिन भर महिलाओं से ही वाणी-व्यवहार करना पडता है। यदि मैं इस जबान को जरा भी अपशब्द के अनुकूल बनाउं तो मेरा धंधा ही चौपट हो जाय।  मैं तो मात्र अपनी वाणी की परिशुद्धता के लिये, इस गधी को भी माँ-बहन कह, सम्बोधित करता हूं। इससे नारी उद्बोधन में मेरे वचन सजग रहते हुए पावन और  सौम्य  बने रहते है।  और मेरा मन भी पवित्रता से हर्षित रहता है।
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