मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

अधिक सम्मान का अधिकारी कौन?


क बार राजा के पुरोहित के मन में विचार आया कि राजा जो मुझे आदर भाव से देखता है, वह सम्मान मेरे ज्ञान का है या मेरे सदाचार का? अगले दिन पुरोहित ने राजकोष से एक सिक्का उठा लिया, जिसे कोष-मंत्री ने देख लिया। उसने सोचा पुरोहित जैसा महान व्यक्ति सिक्का उठाता है तो कोई विशेष प्रयोजन होगा। दूसरे दिन भी यही घटना दोहराई गई। फ़िर भी मंत्री कुछ नहीं बोला तीसरे दिन पुरोहित नें कोष से मुट्ठी भर सिक्के उठा लिए। तब मंत्री ने राजा को बता दिया। राजा नें दरबार में राज पुरोहित से पुछा- क्या मंत्री जी सच कह रहे है?

राज पुरोहित ने उत्तर दिया-‘हां महाराज’ राजा नें राज पुरोहित को तत्काल दंड सुना दिया। तब राजपुरोहित बोला-महाराज! मैने सिक्के उठाए पर मैं चोर नहीं हूँ। मैं यह जानना चाहता था कि सम्मान मेरे ज्ञान का हो रहा है या मेरे सदाचार का? वह परीक्षा हो गई। सम्मान अगर ज्ञान का होता तो आज कटघरे में खड़ा न होता। ज्ञान जितना कल था, उतना ही आज भी मेरे पास सुरक्षित है। पर मेरा केवल सदाचार खण्ड़ित हुआ और मैं सम्मान की जगह दंड योग्य अपराधी निश्चित हो गया। सच ही है चरित्र ही सम्मान पाता है।

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